Jan 20, 2016

कटी पतंग का आखिरी छोर है मजीठिया

प्रिंट मीडिया के पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए गठित वेतन आयोग की सिफारिशें  (उसके अनुसार वेतनमान और अन्य परिलाभ) कोर्ट की प्रक्रिया के अंतिम दौर में हैं यह कोर्ट के फैसले दर फैसले और मालिकनों की हताशा दर हताशा से बिल्कुल साफ हो गया है। ज्यादा पीछे पालेकर और मणिसाना आयोग की सिफारिशों और उसपर मालिकों एवं सत्ता के चरित्र पर न भी जाएं सिर्फ और सिर्फ वर्तमान आयोग पर मालिकानों की भूमिका एवं कोर्ट के रुख को ही देखें तो ऐसा लगता है कि अब हारी हुई लडाई लड रहे हैं मालिकान।


गौर करिये अखबार में कार्यरत किसी भी पत्रकार गैर पत्रकार के लिए अब तक (छह आयोग) गठित किसी भी आयोग की सिफारिशों को लागू कराने का मामला इस हद तक पहुंचा था ? शायद नहीं। यह पहला मामला है जिसकी दस्तक कोर्ट तक हुई। दस्तक ही नहीं हुई देश की सबसे बडी अदालत ने पत्रकारों के पक्ष में अपनी मुहर भी लगा दी । अब जो कुछ भी कोर्ट में है वह उसके आदेश की अवमानना का मामला है। यानी कोर्ट ने कोई आदेश किया या दिया वह लागू हुआ या नहीं इसे हर कोर्ट नियम के अनुसार ही देखती है। अब कोर्ट एक एक पत्रकार के खाते में तो हर माह वेतन तो डालेगी नहीं । वह सिर्फ यह ही देखेगी कि उसके आदेश का पालन हुआ या नहीं। इसी संदर्भ में कोर्ट ने सभी राज्यों से स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी। रिपोर्ट तो गलत भी सौंपी जा सकती है और सौंपी भी गई है।

जरा सोचिए ....। कोर्ट में अवमानना का मामला सात फरवरी १५ में दायर हुआ था । इसपर कोर्ट ने २८ .४.१५ को तीन महीने में सभी राज्यों से स्टेसस रिपोर्ट मांगी। इस हिसाब से २८ जुलाई १५ के बाद फैसला आना चाहिए था जो कि नहीं आया । बीच में बिहार चुनाव के मद्देनजर इसके अधर में होने की खबर सोशल मीडिया के माध्यम से आई और यह भी पता चला कि अब इसपर सुनवाई शीतकालीन अवकाश के बाद १५ जनवरी २०१६ को होगी लेकिन अचानक तीन दिन पहले हो गई ।

जरा सोचिए ... अगर उसी दिन आधी अधूरी स्टेटस रिपोर्ट पर अदालत अपना फैसला सुना देती तो? मालिकों के पक्ष कोई आदेश जारी कर देती तो...? मित्रों अब इसे बिल्ली के भाग्य से छीका टूटा मानिए या चाहे कुछ और सुप्रीम कोर्ट द्वारा हर पीडित कर्मचारी से अतिरिक्त शपथ पत्र मांगा गया है आखिर क्यों ? साथियों यह भी सुनहरा अवसर है कि भडास मीडिया की ओर से वरिष्ठ पत्रकार और उसके संपादक यशवंत जी (इनका उल्लेख इसलिए नहीं कर रहा हूं कि वे इसे स्थान दें बल्कि इस लिए कि मजीठिया सहित अनेक मामलों व आंदोलनों में पत्रकारों के साथ और मालिकों के खिलाफ रहे हैं ) एडवोकेट श्री उमेश शर्मा के माध्यम से हम पत्रकारों के साथ है।

आज की तारीख थोक में सोशल मीडिया की साइटें हैं लेकिन पत्रकारों की लडाई प्रत्यक्ष रूप में वे भी लड रहे हैँ इसलिए एडिशनल एफिडेविट का प्रोफार्मा भरें जो कि भडास ४ मीडिया में है। मित्रों कायरों की लडाई कोई नहीं लडता। एक कहावत/ श्लोक "" वीर भोग्या वसुंधरा"" का मतलब है धरती भी वीरों का ही वरण करती है।
आज अखबार मालिकों की स्थिति उस पतंगबाज की तरह है जिसके हाथ में कटी पतंग का आखिरी सिरा ही है।

कुमार कल्पित

No comments:

Post a Comment