Feb 2, 2016

अमर उजाला देहरादून और डीजीपी का मामला : झगड़ा बढ़ गया






अमर उजाला को विज्ञापन न देने पर डीजीपी के खिलाफ 31 जनवरी और एक फरवरी को प्रकाशित खबरों का मामला तूल पकड़ गय है। पुलिस अधिकारियों ने अमर उजाला न पढ़ने की चेतावनी जारी कर दी है। साथ ही अमर उजाला के विज्ञापन कर्मी के खिलाफ नगर कोतवाली देहरादून में मुकदमा दर्ज कर लिया है। सूत्रों की माने तो अब अमर उजाला के पदाधिकारी मुख्यमंत्री हरीश रावत से मिलकर मामले में समझौता कराने के प्रयास में लगे है।


डीजीपी की ओर से जारी उत्तराखंड पुलिस से अपील 

महिला दरोगा भर्ती से सम्बंधित मात्र विज्ञापन न मिलने से बौखलाए अमर उजाला अखबार ने डीजीपी उत्तराखंड महोदय के सम्बन्ध में पहले 31.1.16 को देहरादून में तथा 1.2.16 को हरिद्वार में फिर उसका फॉलोअप छापा जोकि काफी भद्दा गैरजिम्मेदाराना तरीके से छापा है, इतने बड़े अखबार को ऐसी ओछी हरकत शोभा नहीं देती, एक ही खबर को ज्यों का त्यों दो दिन प्रदेश में अलग स्थानों में छापा गया। प्रदेश पुलिस के मुखिया के बारे में इस प्रकार की टिप्पणी करना पूरे पुलिस विभाग के लिए गंभीर चिंता और मनन का विषय है जोकि सीधे तौर पर उत्तराखण्ड पुलिस के मान सम्मान को ललकारते हुऐ पीतपत्रकारिता का जिताजागता उदाहरण है।

पिछले 2 वर्षों में डीजीपी सर द्वारा किये गए  विभागीय अच्छे कार्यों को तो कभी भी अमर उजाला ने तार्किक जगह तक नहीं दी, यदि कभी-कभार ऐसी ख़बरें छापी भी हैं, तो बाद के पन्नों में वो भी बेमन से, और बहुत कम शब्दों में। परंतु विज्ञापन न मिलने की खबर को अमर उजाला ने फ्रंट पेज की खबर बनाया है।सही में देखा जाये तो अमर उजाला का कुछ सालो में पैटर्न पूरी तरह से पुलिस विभाग का एंटी अखबार है, और मात्र एक ही बदनाम पुलिस अधिकारी का व्यक्तिगत अखबार तक सिमित होकर रह गया है ।  पुलिस विरोधी नकारात्मक खबरें इसमें बड़ी बड़ी और पुलिस विभाग के गुड वर्क की ख़बरें बहुत छोटी छोटी छापी जाती हैं , और वर्तमान खबर तो मात्र सिर्फ और सिर्फ विज्ञापन न मिलने के कारण छापी गयी है, जबकि खबर में जमीन से जुड़े जिस केस को उछालकर जिक्र किया गया है, उस केस के करंट अपडेट को तो जानने की कोशिश तक नहीं की गयी और केस से जुड़े अधिकारीयों को सजा दिए जाने के बारे में लिखा है। जबकि हकीकत में इस केस में धोखाधड़ी तो हमारे dgp सर के साथ हुई है और अपने हक़ के लिये जमकर लड़ना कोई गलत बात नहीं। लेकिन अमर उजाला dgp सर के विरोध में ख़बरें छाप कर उनकी छवि ख़राब कर पूरे पुलिस विभाग को छोटा करने की कोशिश कर रहा है।

पिछले  2 वर्षों में dgp सर ने पुलिस परिवार का मुखिया होने की जिम्मेदारी पूरी शिद्दत से निभाई और अपने अधीनस्थों के भलाई के लिए स्वयं व्यक्तिगत रुचि लेते हुए शासन में लंबे समय से लटकी पड़ी तमाम फाइलों की स्वयं पैरवी की गयी तथा सिपाहियों की वेतन विसंगति, प्रमोशन, स्थायीकरण , नये पदों और पुलिस विभाग के आधुनिकीकरण आदि मामलों का बहुत तेजी से निस्तारण करवाया। वर्ष 2015 में वेतन विसंगति एवं एरियर को लेकर काली पट्टी बांधने एवं सोशल मीडिया पर मेसेज फॉरवर्ड करने के मामले में जब सिपाहियों पर कार्यवाही की बात कई पुलिस अधिकारी कर रहे थे, अकेले dgp सर ही थे, जिन्होंने किसी भी निर्दोष सिपाही पर कार्यवाही नहीं होने दी, उन्होंने किसी निर्दोष के साथ नाइंसाफी नहीं होने दी, जबकि उस मामले में सैकड़ों सिपाहियों पर कार्यवाही की तलवार लटकी हुई थी। यहाँ तक कि dgp सर सिपाहियों के हक़ के लिए वेतन विसंगति समय से ठीक न होने की स्थिति में अपना इस्तीफा तक देने की बात कही थी। यह dgp सर के व्यक्तिगत प्रयासों का ही नतीजा है कि मा0 मुख्यमंत्रीजी ने एरियर के भुगतान के लिए अलग से बजट स्वीक्रत किये जाने की बात कही है और जल्द ही सभी सिपाहियों को एरियर मिल भी जायेगा।
साथियो हम अपने पैसों के लिए तो एकजुट होकर लड़ते हैं, तमाम तरह के हथकंडे अपनाते हैं। परंतु हमारी हक़ और इज़्ज़त की लड़ाई में हमारे साथ खड़े होने वाले dgp सर जब दो महीने में रिटायर होने वाले हैं, तो ऐसे समय में एक अखबार की मनमानी के कारण क्या हम उनकी, अपने विभाग और वर्दी की छवि को धूमिल होते हुए हाथ पर हाथ रखकर यूँ ही देखते रहें? क्या हमें उनके साथ, उनके समर्थन में एकजुट होकर खडे नहीं होना चाहिए ?

यह समय एकजुट होकर पुलिस विभाग को चुनोती देने वालों को मुंह तोड़ जवाब देने का समय है। यह समय dgp सर के साथ उनके समर्थन में खड़े होने का  समय है। ऐसा लगता है कि अमर उजाला के पत्रकार अपनी मर्जी के मालिक हैं, जो मन में आया छाप दिया। जब प्रदेश पुलिस के मुखीया को ही यह अखबार कुछ नहीं समझ रहा है, तो आने वाले दिनों में छोटे अधिकारियो और सिपाहियो का क्या हाल होगा, जरा सोचो, विचार करो और एकजुट होकर इस अखबार के विरोध में खड़े हो जाओ, दिखा दो इन्हें उत्तराखंड पुलिस की एकता और हमारी ताकत। इसलिए इस अखबार को सबक सिखाने के लिए यह जरूरी है कि इस अखबार का विरोध हर स्तर पर किया जाये।

साथियो आज से इस अखबार का विरोध शुरू कर दो और यह विरोध तब तक करते रहो, जब तक यह अखबार हमारे dgp सर से इस खबर के बारे में माफ़ी न मांग ले। जिसके भी घर में , परिवार में, रिश्तेदारी में अमर उजाला अख़बार आता है, आज ही उसे बदलवाकर दूसरा अखबार लगवाओ और अपने हॉकर को तथा पत्रकारिता से जुड़े जिस भी शख्स को जानते हो, उसे भी बताओ कि तुमने यह अखबार क्यों बंद किया है ?

साथियो यह पुलिस की एकजुटता दिखाने का समय है ,मीडिया की दलाली को जवाब देने का समय है हमारे सम्मान की लड़ाई लड़ने वाले DGP के स्वाभिमान की लड़ाई में साथ खड़े होने का समय है और ये दिखाने का समय है कि हम एक हैं और कोई भी हमें हल्के में नहीं ले सकता. देखना है कौन जीतता है हमारी एकता या बिकाऊ मीडिया

जय हिन्द
जय उत्तराखंड पुलिस।

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पुलिस ने निकालनी शुरू की खुन्नस
अब पुलिस ने खुन्नस में अमर उजाला के विज्ञापन कर्मी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। आरोप की विज्ञापन वाले पीएचक्यू में घुसा। विज्ञानकर्मी पर 384, 385, 120 बी, 185,186 धारा लगायी गई है। देहरादून यूनिट में कार्यरत विज्ञापन के अभिषेक शर्मा कें खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा।

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