Feb 5, 2016

ऊपरी अधिकारियों की साठगांठ से एक अनियमित विद्यालय का अवैध कारोबार

डा.राधेश्याम द्विवेदी 
उत्तर प्रदेश के बस्ती शहर से दक्षिण में कभी नगरक राज्य हुआ करता था, जो अब नगर बाजार के रूप में जाना जाता है। यहां गौतम राजाओं का मूल शासन हुआ करता था। यद्यपि इनके आगमन का विस्तृत विवरण नहीं मिलता है, पर अनुश्रूतियां कहतंी हैं कि गौतमों ने भरो एवं डोमकठारों  के लगभग 24 पीढियो को बाहर निकाला था। उन्होंने स्थानीय रौहिला राजाओं को मार डाला था। परगना महुली बहुत दिनों तक इनके क्षेत्र का भाग रहा। उनकी पकड़ इतनी कमजोर रही कि वे 16वीं शताव्दी में सूर्यवंशियों द्वारा भगा दिये गये।


नगर के राजा एवं उनके आदमियों ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध अपने वंश परिवार तथा सारी सम्पत्ति को दांव पर लगा दिया। वे पराजित हुए उन्हें कैद कर गोरखपुर के जेल में डाल दिया गया। वहां उन पर अत्याचार कर करके उन्हें तोड़ने का प्रयास किया गया। जब अंग्रेज कामयाब नहीं हुए तो जेल में उनकी हत्या कर दी गयी और बाहर यह खबर फैलाई गई कि राजा साहब ने जेल में क्षुब्ध होकर आत्म हत्या कर ली। उनकी सारी सम्पत्ति जप्त कर ली गई और अंग्रेजों का साथ देने के कारण इस सम्पत्ति को इसी जिले के एक दूसरे राजा बांसी को पारितोषिक रूप में बांट दिया गया।

जब अंग्रेजो ने इस परिवार को नेस्सनाबूत कर दिया तो यहां की महारानी साहिबा नगर के निकट के पोखरनी गांव की शरण ली। वहां मकान बनवाकर रहने लगी। इस वंश का जब कोई उत्तराधिकारी नहीं बचा तो इसी वंश के पोखरा बाजार में अवस्थित एक स्ववंशी को गोद लेकर इस राज्य का उत्तराधिकारी बनाया गया था। यह परिवार एक संभ्रान्त नागरिक की तरह सम्मानजनक सामाजिक जीवन आज भी बिता रहे हैं

इसी वंश परम्परा से सम्बन्धित पास ही में हर्रैया तहसील के अन्तर्गत पोखरा बाजार नामक एक पुराना गांव है। जो चन्दोताल दक्षिण में मनोरमा के तट पर बसा हुआ है। इस गांव के दक्षिण पश्चिम में एक पुराना डीह है। अ्रंग्रेज सर्वेयर फयूहरर इसे बौद्ध विहार का अवशेष मानता हैं। एसा प्रतीत होता है कि वर्तमान गांव किसी प्राचीन आवादी पर ही बसा हो। यहां नगर राज्य के गौतम वंसियों की प्राचीन जमींदारी रहीं और अभी भी वे यहां निवास करते है।  पूर्ववर्ती अर्गल को भगाने वाला युद्ध स्थल बैरागल या रैयल इस गांव के पास ही ही है। बैरागल के पठानों यहां के राजपूतों की अधीनता स्वीकार कर रहने लगे और अब भी रहते हैं।

आज से लगभग 50 -60 साल पहले पड़ोस के गांव के एक सामान्य से ब्राहमण यहां अपनी पैठ बनाकर रहने लगे। कांग्रेस से जुडे रहने के कारण धीरे धीरे इस गांव के संभ्रान्त बन गये। अनेकों सालों तक उन्होने प्रधानी संभाली तथा अनेक लोगों का काम अपने परिचय के बल पर कराते रहे। वे छोट-मोटे विवाद भी निपटाते थे और किसी किसी का जमीन जायदाद लेकर उसकी मदद भी कर देते रहे। लोगों को कानूनी राय देकर कही किसी का लाभ कराते रहे तो किसी का नुकसान भी हो जाता रहा ।

अपनी प्रधानी के समय कुछ सलाहकारों की राय से इन्होने गांव सभा की जमीन में एक विद्यालय खोलने की योजना बनाई। इसका नाम जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पोखरा बाजार रखा गया। वे इस विद्यालय के संस्थापक प्रवंधक रहे। प्रबन्ध तंत्र की अपनी निजी कोई भूमि नहीं थी। प्रबन्ध समिति के प्रबन्धक विद्यालय के प्रबन्धक के साथ-साथ ग्राम सभा के प्रधान एवं भूमि प्रबन्धक समिति, पोखरा, बस्ती के अध्यक्ष भी थे। उन्होने  उक्त विद्यालय के नाम पुराना गाटा सं. 422/5-10-2, 423/3-14-18 एवं 425/2-1-12 (नया गाटा संख्या 243/1-392 हे. तथा गाटा संख्या 700/1.473 हे.) पर फर्जी पट्टा सहायक चकबन्दी अधिकारी के माध्यम से करवाकर अपने विद्यालय को बतौर स्वामी अंकित करवाकर कब्जा प्राप्त कर लिया। इस पर अनेक कमरों, हॉल व विद्यालय का निर्माण कर लिया गया है।

जब हस्तान्तरण की जानकारी बन्दोबस्त अधिकारी चकबन्दी, बस्ती को हुई तो उन्होंने 15 दिसम्बर 2008 को उपसंचालक चकबन्दी, बस्ती को संदर्भ सं. 452 के माध्यम से पूरी अवैध हस्तान्तरण की रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस पर उपसंचालक चकबन्दी ने गुण दोष के आधार पर सहायक चकबन्दी अधिकारी की गलत प्रविष्टियों को अवैध मानते हुए दिनांक 02 अप्रैल 2009 को उक्त विद्यालय की तथाकथित विवादित भूमि को गाँव सभा की बंजर भूमि स्वीकार किया और एत्दादेश एवं निर्णय पारित किया परन्तु सात साल बीत जाने के बावजूद भी इस आदेश पर अमल नहीं किया गया है।
उपसंचालक चकबन्दी के इस आदेश के विरुद्ध प्रबन्धक एवं प्रधानाचार्य माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में एक सिविल मिसलीनियस रिट पिटीशन सं. 33049/2009 जनता उ. मा. वि. पोखरा एवं अन्य बनाम डिप्टी डायरेक्टर चकबन्दी, बस्ती एवं अन्य के नाम दाखिल किया। इस पर माननीय उच्च न्यायालय ने बड़ी गम्भीरता से पूरे मामले का गुण-दोष के आधार पर विवेचना एवं परीक्षण कर 7 पृष्ठों में दिनांक 07.जनवरी .2010 को अपना निर्णय घोषित किया। ( इस निर्णय की प्रति गूगल पर सर्च करके देखा जा सकता है।) माननीय न्यायालय ने अपीलकर्ता की अपील खारिज करते हुए उपसंचालक, चकबन्दी, बस्ती का दिनांक 2 अपै्रल 2009 का पारित आदेश को बरकरार रखा। इस आदेश का भी क्रियान्वयन लगभग सात वर्ष बीत जाने पर अभी तक नहीं किया गया है।
मा. उच्च न्यायालय द्वारा मिसलेनियस रिट पिटीशन खारिज हो जाने तथा उप संचालक, चकबन्दी के दिनांक 02 अप्रैल 2009 के आदेश के बरकरार रखने के माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के तथ्यों को छिपाकर विद्यालय के नये प्रबन्धक ने जोत चकबन्दी अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत उपसंचालक, चकबन्दी के दिनांक 02 अप्रैल 2009 के आदेश के विरुद्ध पुनः कायमी का एक नया निगरानी वाद 262/2079 दाखिल किया था। इसे उपसंचालक, चकबन्दी/जिला कलक्टर बस्ती ने अपने 29 जुलाई .2013 के आदेश से निरस्त कर दिया और दिनांक 02 जुलाई 2009 का पूर्व आदेश ही बरकरार रखा।

इस निरस्त आदेश को पारित हुये भी चार वर्ष से ऊपर हो गया है परन्तु इसकी कोई अनुवर्ती कार्यवाही अभी तक नहीं की गई है। केस को किसी दिवानी न्यायालय में डालकर उलझाया जा रहा है और मा. उच्च न्यायालय के आदेश का खुल्मखुल्ला उलंघन एवं अवहेलता की जा रही है। यही नहीं मा. उच्च न्यायालय ने उक्त भूमि पुनः गाँवसभा को वापस करने का आदेश पारित किया तथा विद्यालय प्रबन्धक समिति द्वारा अर्जित लाभों को दण्ड एवं ब्याज के साथ गाँव सभा को वापस करने का आदेश भी पारित किया। इतना हो जाने के बाद अपर तहसीलदार (न्यायिक), हरैया ने वाद सं. 276 गाँव सभा बनाम जनता माध्यमिक विद्यालय में ’’उ. प्र. जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था नियमावली’’ 1952 के अधीन धारा 115 सी की कार्यवाही कर 27 मार्च 2014 को रु. 57,30,005/- (सत्तावन लाख तीस हजार पाँच रुपये मात्र) का रिकवरी सर्टिफिकेट भी निर्गत किया है।  इसे निर्गत हुए दो साल बीत चुकने के बाद भी अभी तक न तो वसूली की गयी है और ना ही गाँवसभा की भूमि ही विद्यालय से वापस मिल पायी है। इससे राज्य सरकार एवं गाँव सभा को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है।

मा. उच्च न्यायालय का आदेश विद्यालय के विरुद्ध पारित हो जाने के बाद विद्यालय के वर्तमान प्रबन्धक तथा प्रधानाचार्य, जनता उ. मा. विद्यालय, पोखरा, बस्ती के विरुद्ध गाँव सभा की सम्पत्ति धोखाधड़ी एवं जाल फरेब करके हड़पने के बावत श्री मनोज कुमार सिंह, चकबन्दी अधिकारी, सोनहा ने थाना नगर बाजार बस्ती में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 419, 420, 467 एवं 468 में दिनांक 05.12.2012 को एफ.आई.आर. दर्ज कराई है। परन्तु ले  दे करके उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई और फाइनल रिपोर्ट लगाकर केस खत्म करा दिया गया है।  इस हीला हवाली से लाखों रुपये का सरकारी धन का नुकसान लगातार हो रहा है। आरोपी अभी भी उस अवैधानिक लाभ का निरन्तर उपभोग करता चला आ रहा है। जिससे गाँव सभा की क्षति निरन्तर बढ़ती जा रही है।

इतना ही नहीं उक्त विद्यालय के पूर्व प्रबन्धक एवं प्रधानाचार्य जो रिश्ते में पिता-पुत्र भी हैं, उन्होने उक्त विद्यालय में अपने खास परिवारीजनों एवं रिश्तेदारों को नियुक्ति दे रखी है। इनमें कई तो निर्धारित शैक्षिक योग्यता पूरी नहीं करते। इन नियुक्तियों में शिक्षा विभाग की नियुक्ति प्रक्रिया को सही रूप में नहीं अपनायी गयी है। इस बावत जिला विद्यालय निरीक्षक, बस्ती से इन अनियमितताओं एवं नियुक्तियों से  सम्बन्धित लगभग दर्जनों आवेदन पत्र सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत राज्य जन सूचना अधिकारी/जिला विद्यालय निरीक्षक, बस्ती एवं सूचना आयुक्त, लखनऊ के यहाँ चले। कुछ में निर्णय भी हो चुके हैं और कुछ विचाराधीन है । प्रधानाचार्य अपने रसूख एवं राजनैतिक प्रभाव का प्रयोग करके सही सूचना व तथ्य उपलब्ध नहीं करने देते है।ं वे पूरे शिक्षा तंत्र को भ्रमित करते रहते हैं। ग्राम मरवटिया पाण्डेय के एक आवेदनकर्ता के एक आवेदन पर सूचना आयुक्त ने जिला विद्यालय निरीक्षक के विरूद्ध 25 हजार स्पये का फाइन भी लगा रखा है। इसे जिले के कुछ प्रभावशाली माननीयों से दवाव डलवाकर तथा जिलधिकारी को अपने पक्ष में कराके आदेश के पालन से कतराया जा रहा है।

विद्यालय के पूर्व प्रबन्धक एवं गाँव सभा के प्रधान एवं उनके पुत्र एवं प्रधानाचार्य ने विद्यालय की सम्पत्ति से संबंधित, घोर मनमानी, पद का दुरुपयोग, शिक्षकों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति में योग्यताओं एवं नियुक्ति प्रक्रियाओं का घोर उल्लघंन किये हैं तथा विद्यालय से अवैध लाभ एवं धनार्जन प्राप्त करते चले आ रहे हैं, और किसी भी प्रकार की शिकायत होने पर उसे दबवा देते हैं।
पोखरा गाँव सभा के प्रधान एवं विद्यालय के पूर्व प्रबन्धक ने शिक्षा नियमों की अनदेखी करके अपने सगे ज्येष्ठ पुत्र को 01 जुलीई 1978 से प्रधानाचार्य नियुक्त कर रखा है। उस समय तक उन्होंने बी.एड. प्रशिक्षण की डिग्री भी नहीं प्राप्त कर पायी थी। तब से आज तक वही प्रधानाचार्य के रूप में अपने पद का उपभोग करते हुए सरकारी वेतन तथा अन्य लाभ अर्जित कर रहे हैं।

विद्यालय के पूर्व प्रबन्धक ने अपने 1975 में हाईस्कूल पास एक दूसरे पुत्र को लिपिक, तृतीय पुत्र की पत्नी को बिना प्रशिक्षण डिग्री के अध्यापक, एक भतीजे को बिना प्रशिक्षण डिग्री के शिक्षक, दूसरे भतीजे को अनुचर, अपने दामाद को शिक्षक, द्वितीय पुत्र के साले को शिक्षक, भांजे को दफ्तरी तथा साले के पुत्र को लिपिक पद पर नियुक्त कर रखा है। इस प्रकार बड़ी मात्रा में सरकारी धन अवैध तरीके से अपने परिवार व रिश्तेदार के मध्य बन्दर बांट करते चले आ रहे हैं। इन नियुक्तियों में नियुक्ति प्रक्रिया का घोर उल्लघंन किया गया है तथा बिना प्रशिक्षण डिग्री के इन्हें स्थायी शिक्षक नियुक्त कर दिया गया है जबकि तमाम प्रशिक्षित अभ्यर्थी दर-दर ठोकरें खा रहे हैं।

विद्यालय के पूर्व प्रबन्धक ने अपने अन्य दूर के दो रिश्तेदारों को शिक्षक पद पर नियुक्त कर रखा है। इन नियुक्तियों में जिला विद्यालय निरीक्षक के कार्यालय का सहयोग लेने हेतु लेखाधिकारी के भाई को शिक्षक तथा स्टाफ के दो परिजनों को अनुचर पदों पर भी नियुक्त कर रखा है। इससे विद्यालय तंत्र एवं सरकारी शिक्षा विभाग का मिलीभगत एवं षड़यन्त्र की प्रथमदृष्टया पुष्टि होती है परन्तु इन सबके विरुद्ध अभी तक कोई जाँच या अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं हो पायी है। पूर्व प्रबन्धक की मृत्यु के बाद विद्यालय प्रबन्ध तन्त्र उनके पुत्र के हाथ में आ गया है जो एक डमी प्रबन्धक बनाकर विद्यालय के धन का मनमानी दुरुपयोग करके अराजक एवं अनैतिक कार्यों से पूरे क्षेत्र को आतंकित करते रहते हैं।

प्रधानाचार्य के इस काम से आम नागरिकों का जीना हराम हो गया है। इनके तथा विद्यालय में नियुक्त इनके परिवारी जनों के विरुद्ध दर्जनों अपराधिक मुकदमें कप्तानगंज एवं नगर बाजार थानों एवं बस्ती के न्यायालयों में लम्बित हैं। इन पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्यवाही करने के पूरे आधार हैं, परन्तु सत्ता दल की चापलूसी करके वे अपने मंसूबे को कामयाब करने में सफल होते जा रहे हैं।
इन सारे विन्दुओं को एक शिकायत सं. 359/2014 के माध्यम से माननीय लोकायुक्त उ. प्र. के यहां एक सौनिक अधिकारी के द्वारा दाखिल की गई ,जिसे  माननीय लोकायुक्त ने ’’निजी विद्यालय के प्रधानाचार्य के विरूद्ध होने का आधार’’ बताते हुए सुनवाई करने से इनकार कर दिया।

जब इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय ने आदेश पारित कर रखा है और सरकार का धन व सम्पत्ति गलत व्यक्तियों के माध्यम से निरन्तर हानि पहुचाया जा रहा है तो यह निजी विद्यालय का माननीय लोकायुक्त प्रशासन का आधार कोई वजन नहीं रखता। इससे एक भ्रष्टाचार विना उजागिर हुए रसूक के बल पर दफन हो गया। चूंकि शिक्षा विभाग के नाम पर शिक्षा के आदर्श कहाने वाले जनों की यह दास्तान समाज तथा कानून के विरुद्ध थी। इसलिए इसकी निष्पक्ष जांच के लिए आगरा के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने 29 अगस्त 2014 को माननीय राष्ट्रपति महोदय, माननीय प्रधानमंत्री महोदय, माननीय राज्यपाल महोदयों को एक एक प्रतिवेदन भेजा था। इसकी एक एक प्रति मुख्य सचिव उ. प्र. शासन, लखनऊ, शिक्षा निदेशक उ. प्र. शासन, लखनऊ , जनपद न्यायाधीश बस्ती, आयुक्त बस्ती तथा जिलाधिकारी बस्ती को भेजा गया था। जब इस पर कोई कार्यवाही नही हुई तो 1 अक्तूबर 2014 को एक एक ध्यानाकर्षण आवेदन पत्र पुनः उपरोक्त अधिकारियों को भेजा गया।
माननीय राष्ट्रपति जी ,भारत सरकार माननीय प्रधानमंत्री जी भारत सरकार , माननीय राज्यपाल जी उत्तर प्रदेश सरकार ने यह प्रार्थनापत्र माननीय मुख्यमंत्रीजी उ. प्र. कार्यालय को अग्रिम काय्रवाही के लिए भेज दिया। वहां से यह प्रकरण मुख्य सचिव माध्यमिक शिक्षा के यहां विगत दो साल से लम्बित हैं । इससे सम्बन्धित कोई जांच  राजकीय इन्टर कालेज बस्ती के प्रधानाचार्य श्री शिव वहादुर सिंह ने की है, परन्तु उसका कोई नतीजा अभी तक दिखाई नहीं पड़ा हैं । यह प्रकरण की कोई फाइल आयुक्त बस्ती तथा जिलाधिकारी बस्ती के कार्यालर्यें  में कहीं दबा पड़ा है। इसको  रसूकदार आरोपी ने दे लेकर कहीं छिपवा दिया है। शिक्षा के मन्दिर के पुजारी तथा व्यवस्थाकार जब इस प्रकार के कार्य करेंगे तो समाज की दशा व दिशा क्या होगी ? यह एक अनुत्तरित प्रश्न बना हुआ है।

डा.राधेश्याम द्विवेदी
पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी
भारतीय पुराततव सर्वेक्षण आगरा

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