May 28, 2016

अस्सी साल के मेहंदी हसन ठेला खींचते हुए....







रामजी मिश्र 'मित्र'
सीतापुर/ "झोपड़ियाँ शबनम ए क़तर को तरसती रहीं, बदलियाँ उठती हैं महलों पर बरस कर चली जाती हैं" किसी की ये चंद लाइने सीतापुर जिले की हकीकत पर कितना सटीक बैठती हैं। कहने को तमाम योजनाएँ आयीं और चली गईं लेकिन वह महज कागजी साबित होकर रह गयीं। यूं तो योजनाओं का ढिंढोरा पीटने वाली तमाम सरकारों के कार्यकाल में कई सावन आए और गए लेकिन हम उन लोगों की जिंदगी सामने लाने जा रहे हैं जिनका हर सावन सूखा का सूखा ही रहा। आज भी जिंदगी कल की तरह वैसे ही बेबस है हकीकत जानने के बाद आप यहीं कहने वाले हैं। बेबस और लाचार जिंदगी जीने वाले लोग कई हैं नतीजन अधिकारी, नेता सब सवालों के घेरे में हैं और सबसे बड़ा सवाल खड़ा हुआ है भारत में यह कैसा लोकतन्त्र है? तमाम वादों और दावों के बीच भी जगन्नाथ की जिंदगी उन दावो और वादों को महज छलावा साबित करती नजर आ रही है। जगन्नाथ की उम्र अस्सी साल है। जगन्नाथ महोली तहसील के कलवारी कला में रहता है।



इनके पास खेती भी महज दो बीघा है। यह भूंख मिटाने की खातिर ठलिया चलाते हैं। जगन्नाथ ने बताया कि हजारों रुपये घूस में चले गए बावजूद इसके उसे कभी कोई सरकारी लाभ नही मिला। और तो और राशन कार्ड भी नही। पिछले साल तबाही के कहर ने उसकी सारी फसल चौपट कर दी लेकिन वह नही जानता मुवावजा किसे कहते हैं। वह डबडबायी आँखों से बोला अब तो बूढ़ा होने की वजह से काम भी नही मिलता। फिर भी जैसे तैसे रोटी खा लेने की बात वह रूखे मन से कह गया। कुछ ऐसी ही कहानी खाट बीन कर रोजी कमा रहे महोली तहसील के श्याम बेहड़ के निवासी जंगली की भी है। वैसे तो जंगली की उम्र 81साल है लेकिन पेट की आग बुढ़ापे पर भी दया नही खाती नतीजन वह खाट बीनकर कुछ पैसे कमा कर आजीविका चला रहा है। इसी तहसील में पड़ने वाले जयदयालपुर गाँव के निवासी ब्रजलाल 62साल के हो चुके हैं इनको भी पेट की खातिर ठलिया खींचनी पड़ रही है। तमाम सरकारी वादों और दावो को वह सुनते हैं लेकिन उन्होने बताया कि सरकारें सिर्फ एलेक्सन देखती हैं गरीब की बेबसी नही।

तहसील के ही महमूदपुर गाँव के सीताराम की उम्र बासठ साल है। वह सुबह से शाम तक भूंख की खातिर काम करने को मजबूर हैं। वह साइकिल पिंकचर जोड़ने का काम करते हैं। इनके पास न तो कोई भूमि है और न कोई और जुगत जिससे वह उम्र के इस पड़ाव में आराम से रह सकें। महोली तहसील के तकिया गाँव के मेहदी हसन की उम्र अस्सी साल हो चुकी है और वह भी ठलिया खीचते हैं। बेहद थके हारे और हाफते मेहदी हसन से जब उम्र के इस पड़ाव पर काम करने की वजह पूछी तो वह बोला 'शौख है, पेट की आग बुझाने का शौख।' जब उससे सरकारी योजनाओं के बारे में पूंछा तो उसका जवाब था "सरकारी योजनाओं को खाये कि चबाएँ।" दरअसल सीतापुर जिले में ऐसे गरीब असहाय न मालूम कितने हैं जिनकी कोई सुनता नजर नही आ रहा । आखिर ये लोग आज भी सरकारी लाभों से अछूते कैसे रह गए। आखिर जिस विकास की बात की जा रही है क्या यह वही विकास है। सरकारी आंकड़े कुछ भी कहते हों लेकिन हकीकत क्या कहती है यह आपके सामने है। हैरानी की बात तो यह है कि यह तमाम लोग ऐसी जगह काम करते हैं जो उप जिलाधिकारी कार्यालय महोली  के आस पास होते हैं। इन तमाम बूढ़े श्रमिकों की कमर तोड़ मेहनत उत्तर प्रदेश की शर्मनाक तस्वीर बन कर उभरी है। वैसे तो वह सरकारी योजनाओं को महज दिखावा मानते हैं और माने भी क्यो न लेकिन फिर भी आखिर इस तस्वीर को सुधारने का काम कब शुरू होगा तमाम श्रमिकों की बूढ़ी आंखे यह सवाल पूंछती जरूर नजर आ रही हैं। विडम्बना तो देखिये गरीब तो बूढ़ा हुआ लाचार हुआ बेबस हुआ लेकिन गरीबी और भूंख बावजूद इसके जवान की जवान बनी रही।

Ramji Mishra रामजी मिश्र 'मित्र'
ramji3789@gmail.com

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